विकास

टोक्यो ओलंपिक की सस्टेनिबिलिटी ऑडिटिंग रिपोर्ट पर सवाल

Anil Ashwani Sharma

टोक्यो ओलंपिक के खत्म होने के बाद आने वाली सस्टेनिबिलिटी (सतत विकास) ऑडिटिंग रिपोर्ट पर दुनियाभर के पर्यावरणविदों की नजर है। हालांकि दुनियाभर के अधिकांश पर्यावरणविद मानते हैं कि टोक्यो ओलंपिक खेलों के लिए अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) द्वारा बनाए गए सस्टेनिबिलिटी मानकों को कड़ाई से लागू नहीं किया गया है। ऐसे में खेलों के बाद आने वाली जापान ओलंपिक समिति की सस्टेनिबिलिटी ऑडिटिंग रिपोर्ट पर सवाल उठना लाजिमी है। क्योंकि इस ओलंपिक खेलों के दौरान आईओसी ने नया एजेंडा-21 लागू किया है। वहीं दूसरी ओर आईओसी का दावा है कि सस्टेनिबिलिटी के मानक टोक्योवासियों के विरोध को ध्यान में रखते हुए कड़ाई से लागू किए गए हैं। यही कारण है कि खेलों के समापन के बाद जापान ओलंपिक समिति की सस्टेनिबिलिटी ऑडिटिंग रिपोर्ट पर आईओसी की भी नजर है।

कहने के लिए तो यह आईओसी के हाथ को और मजबूत करने के लिए बनाया गया है, लेकिन यहां ध्यान देना होगा कि इस एजेंडा में खेल के लिए बोली लगाने वाले शहरों के अपने ढांचागत निर्माण प्रक्रिया पर कम से कम खर्च करने और विकास प्रक्रिया के दौरान तमाम सस्टेनिबिलिटी मानक लागू किए गए हैं या नहीं, इसकी जिम्मेदारी आईओसी पर है। अब सवाल है कि क्या एजेंडा-21 के मानकों को आईओसी, जापान ओलंपिक समिति से अक्षश: पालन करवाने में सफल रहा का नहीं? क्योंकि टोक्यो में हो रहे ओलंपिक खेलों का कोरोना के कारण तो विरोध हो ही रहा था लेकिन इसके अलावा भी इस ओलंपिक आयोजन का इस बात के लिए विरोध किया जा रहा था कि शहर में खेलों के लिए बन रहे इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण प्रदूषण में तेजी और शहरी विरासत को लगातार नुकसान पहुंचा है।

ऐसे में ओलंपिक आयोजन के लिए टोक्यो शहर की विरासत और सस्टेनिबिलिटी का ध्यान रखना बहुत जरूरी था। यही कारण है कि टोक्यो ओलंपिक शुरू होने के बाद से सस्टेनिबिलिटी और शहरी विरासत को बचाए रखने की बहस और तेज हो गई है। इस बहस का ही नतीजा है कि जापान ओलंपिक समिति ने ओलंपिक और पैरालम्पिक खेल टोक्यो-2020 के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों और रीसायकल योग्य सामग्रियों को अपनी सस्टेनिबिलिटी योजनाओं में प्रमुखता से न केवल शामिल किया है बल्कि इसे लागू करने का दावा भी किया गया है। भविष्य में अब इस तरह के आयोजनों को आयोजित करते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखना होगा।

 इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय जर्नल “नेचर सस्टेनिबिलिटी” के अनुसार ओलंपिक आयोजनों के लिए 1990 के दशक में पहली बार सस्टेनिबिलिटी के लिए चिंता व्यक्त की गई। इस चिंता का ही परिणाम था कि 1994 में आईओसी ने निर्णय लिया कि ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन खेलों के लिए उम्मीदवार शहरों को पर्यावरणीय आधार पर औपचारिक रूप से अपनी योजनाओं का मूल्यांकन करना होगा। और साथ ही  “पर्यावरण” को “खेल” और “संस्कृति” के साथ-साथ ओलंपिक आंदोलन के “तीसरे स्तंभ” के रूप में मानने का भी संकल्प लिया गया। यहां तक कि ओलंपिक आंदोलन को पूरे सौ साल के पूरा होने के अवसर पर पर्यावरणीय मुद्दों की प्रमुखता को बनाए रखने के लिए 1996 में ओलंपिक चार्टर तक में संशोधन किया गया। इसके अनुसार आईओसी ने अक्टूबर, 1999 में पर्यावरण की सुरक्षा और सतत विकास को बढ़ाने में सभी स्तरों पर खेल समुदाय के लिए उपयोगी एजेंडा-21 दस्तावेज तैयार किया।

जर्नल के अनुसार सस्टेनिबिलिटी एजेंडा ने दो अन्य लक्ष्यों को भी शामिल किया गया। पहला यह कि अब आईओसी को ओलंपिक आयोजन करने वाले शहर से स्टेडियम और बुनियादी ढांचे के निर्माण पर बड़ी मात्रा में खर्च करने की आवश्यकता पर सवाल करने का अधिकार दिया गया। हालांकि यहां ध्यान देना होगा कि आईओसी को 1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक के शुरूआती दौर में ही ग्रीष्मकालीन खेलों के लिए बोली लगाने के इच्छुक शहरों की कमी ने यह स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया था कि अब सस्टेनिबिलिटी और विरासत की बात पर गंभीर होना होगा। 

इसकी शुरुआत रोम ओलिंपक-1960 के साथ ही हो गई थी और यह प्रवृत्ति सियोल ओलंपिक-1988 में अपने चरमोत्कर्ष पर जा पहुंची। जब शहरी के सबसे घनी आबादी वाले इलाकों से ओलंपिक पार्क बनाने के लिए 7,20,000 लोगों को उनके घरों से जबरन विस्थापित कर दिया गया और बार्सिलोना ओलंपिक-1992 में तो भारी मात्रा में निवेश (83 प्रतिशत) खेलों के बजाय शहरी ताने-बाने को फिर से बनाने में चला गया। ऐसे में ओलंपिक आयोजन करने वाले शहर की खेलों के बाद आने वाली सस्टेनिबिलिटी ऑडिटिंग रिपोर्ट आईओसी के हाथ को और मजबूत करेगी। क्योंकि वह खेल के लिए बोली लगाने वाले शहरों के अपने ढांचा निर्माण पर कम से कम खर्च करने और शहर की विकास प्रक्रियाओं पर आईओसी नजर रख सकेगी।  

एजेंडा-21 सबसे पहले लंदन ओलंपिक-2012 में लागू किए गए। और काफी हद तक अपने लक्ष्य को पाने में सफल भी रहे क्योंकि इससे शहर में निवेश अच्छा खासा हुआ और शहर में आवागमन के लिए बेहतर पहुंच बनी। लंदन के अनुभव ने बताया कि शहर की विरासत को बेचना आसान था, इसके विपरीत सस्टेनिबिलिटी को एक तकनीकी मामले के रूप में और उस प्रक्रिया के हिस्से के रूप में अधिक पहचाना गया जिसके द्वारा विरासत हासिल की जानी चाहिए थी। यहां विवाद इस बात को लेकर जारी है कि क्या ओलंपिक के बाद के शहर में बने आवास, बाजार मूल्य पर बेचे गए? और क्या ये सामाजिक सस्टेनिबिलिटी के लिए लागू मानकों को पूरा किया?  

इसके पहले आईओसी ने एजेंडा-2020 प्रकाशित किया था। इसमें 40 सिफारिशें की गईं थीं। इसमें सबसे प्रमुख थी खेलों के लिए बोली लगाने और आयोजन की लागत को कम करने के उपाय। यहां तक कि खर्च को साझा करने के लिए मेजबान शहरों द्वारा संयुक्त बोलियों की संभावना को भी रोक दिया गया था।  इसके अलावा शहर की जरूरतों और मौजूदा सुविधाओं के अनुरूप अधिक लचीलेपन की अनुमति देने की बात कही गई थी। इसके अलावा ओलंपिक आयोजन की संभावित लागत को कम करने, बोली प्रक्रिया में और बदलाव और सार्वजनिक परिवहन पर अधिक जोर दिया गया। इसके आधार पर एक संभावित गणना की गई कि इन मानकों को यदि लागू किया जाता है तो ग्रीष्मकालीन खेलों के आयोजन में लगभग 959 मिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत होगी।

पिछले 40 वर्षों में दूसरी बार आईओसी के सामने ग्रीष्मकालीन खेलों के लिए बोली लगाने के लिए संभावित शहरों की संख्या न के बराबर थी। जब 2017 में 2024 ग्रीष्मकालीन खेलों के लिए अंतिम बोली प्रक्रिया पूरी हुई तो आईओसी के पास केवल दो उम्मीदवार शहर रह गए थे, यह थे-पेरिस और लॉस एंजिल्स। इसी प्रकार की समसया 2015 में भी हुई थी, जब शीतकालीन खेलों के के लिए आईओसी के पास केवल दो उम्मीदवारों थे और यह थे- बीजिंग और अल्माटी (कजाकिस्तान)। यह सिलसिला लगातार चला और 2019 में भी केवल दो शहर 2026 शीतकालीन खेलों (मिलान और स्टॉकहोम) की दौड़ में थे। यही कारण है कि अब इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आईओसी अधिक व्यावहारिक होते हुए सस्टेनिबिलिटी और विरासत पर अधिक जोर दे रही है। और अब किसी भी ओलंपिक आयोजन के लिए यही सबसे बड़े मानक होंगे।